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 Fighter Movie Review: आसमानी मोहब्बत की बार बार रुलाने वाली कहानी, ऋतिक व दीपिका साथ हों, तो फिर और क्या चाहिए

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Movie Review
फाइटर
कलाकार
ऋतिक रोशन , दीपिका पादुकोण , अनिल कपूर , करण सिंह ग्रोवर , अक्षय ओबेरॉय और ऋषभ साहनी
लेखक
सिद्धार्थ आनंद , रमन छिब , हुसैन दलाल , अब्बास दलाल और विश्वपति सरकार
निर्देशक
सिद्धार्थ आनंद
निर्माता
वॉयकॉम18 स्टूडियोज और मारफ्लिक्स पिक्चर्स
रिलीज
25 जनवरी 2023
रेटिंग
 
3/5

एक्शन फिल्म हो, पाकिस्तान के कुछ सिरफिरे विलेन हों, हीरो हमारा फौजी हो, कुछ दर्द भरे एहसास हों, साथ में एक दो तड़कते-भड़कते गाने हों..बस। हिंदी सिनेमा का ये ताजातरीन बॉक्स ऑफिस फॉर्मूला है। ये सच है कि एक्शन फिल्में दुनिया भर में सबसे ज्यादा कारोबार करने वाली फिल्मों की श्रेणी है, लेकिन फिल्म ‘फाइटर’ एक मसाला फिल्म से ज्यादा भारतीय वायुसेना की शो रील है। ये फिल्म दिखाती है कि भारतीय वायुसेना अगर ठान ले तो क्या मजाल पड़ोसी मुल्कों के ये सिरफिरे भारत की तरफ आंख उठाकर देखने की सोचें भी। फिल्म ‘फाइटर’ की तुलना टॉम क्रूज की फिल्मों ‘टॉप गन’ और ‘टॉप गन मैवेरिक’ से होगी, कंगना रनौत की ‘तेजस’ देख चुके लोग उससे भी इसकी समानताएं तलाशेंगे लेकिन ये फिल्म ऋतिक रोशन और दीपिका पादुकोण की है। और, यही दो कारक फिल्म ‘फाइटर’ को सिनेमाघरों में देखने के लिए काफी हैं। हां, ऋतिक और दीपिका पर फिल्माया गया गाना ‘इश्क जैसा कुछ’ फिल्म में न देखकर दोनों के प्रशंसकों को निराशा जरूर होगी।

             

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वायुसेना की सलाम नमस्ते...

फिल्म ‘फाइटर’ शुरू में ही बता देती है कि ये भारतीय वायुसेना के सहयोग से बनी फिल्म है। फिल्म के निर्माताओं में से एक रमन छिब खुद भी वायुसेना में रह चुके हैं। पटकथा भी उन्होंने ही लिखी है। सिद्धार्थ आनंद ने फिल्म की कथा, पटकथा और संवाद गढ़ने में शोध काफी किया है। जम्मू, हैदराबाद और लखनऊ में घूमती फिल्म की कहानी शमशेर पठानिया की है। कॉलिंग नेम उसका फौज में पैटी है और घर पर शम्मी। दिल उसका टूटा हुआ है और इसकी वजह उसका सीओ जिस बात को मानता है, उसकी वजह से ही वह उससे खफा भी है। नई एक्शन टीम बन रही है। मीनल राठौड़ उसका हिस्सा बनती है। पैटी को देखते ही वह उस पर फिदा तो नहीं होती लेकिन उसके रुआब में रुचि खूब लेती है। दोनों के बीच रिश्ता बनता सा दिखता है लेकिन तभी कुछ होता है कि पैटी को वापस एयरफोर्स अकादमी भेज दिया जाता है। इधर, एक ऑपरेशन में जम्मू की एक्शन टीम बिखरती है। उधर, पैटी नौकरी छोड़ने का मन बना लेता है, लेकिन जंग में नियम कायदे नहीं, जीत जरूरी होती है। फिल्म का एक संवाद भी है, ‘जंग में सिर्फ हार या जीत होती है, कोई मैन ऑफ द मैच नहीं होता।’ टीम बिल्डिंग का एक और संवाद गौर करने लायक है, ‘जो अकेला खेल रहा होता है, वो टीम के खिलाफ खेल रहा होता है।’

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पाकिस्तान में बैंग बैंग...

सिद्धार्थ आनंद की बतौर निर्देशक ये आठवीं फिल्म है। विजुअल इफेक्ट्स और कंप्यूटर ग्राफिक्स इमेजिंग के वह मास्टर हो चुके हैं। एक्शन फिल्मों का एक नया सिलसिला सिद्धार्थ ने ऋतिक रोशन के साथ ही मिलकर फिल्म ‘बैंग बैंग’ से शुरू किया था। फिल्म ‘वॉर’ में उन्होंने अपने पंजे खोले और फिल्म ‘पठान’ उनकी इस नई उड़ान का सबसे ऊंची मंजिल बनी। फिल्म ‘फाइटर’ ने उनको निर्माता बनने का हौसला दिया है। करीब 200 करोड़ रुपये में बनी फिल्म ‘फाइटर’ को सिद्धार्थ ने एक मसाला हिंदी फिल्म की तरह बनाया है। ऋतिक और दीपिका के बीच की प्रेम कहानी को वह धीमी आंच पर पकाते चलते हैं और पाकिस्तान को भारत का दुश्मन देश नहीं बताते हैं। वह पाकिस्तान की धरती से चलने वाले आतंकवाद को अपनी फिल्म का विलेन बनाते हैं और इसी कसरत में वह फिल्म में विलेन का एक नया चेहरा लाते हैं। ये कितना खूंखार है, ये सिद्धार्थ दिखाते नहीं, बस बताते हैं। फिल्म ‘फाइटर’ के खलनायक ही इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी हैं। ऋषभ साहनी ने लंबे बाल, एक लाल आंख के साथ कोशिश पूरी की है, फिल्म का तनाव बढ़ाने की लेकिन हिंदी सिनेमा का ‘खलनायक’ बन पाने का उनका व्यक्तित्व नहीं है। फिल्म ‘टाइगर 3’ में विलेन बने इमरान हाशमी जैसा ही उनका भी हाल है। कोशिश पूरी, असर मामूली।

ऋतिक और दीपिका का तारा रम पम...

खैर, फिल्म ‘फाइटर’ लोग ऋषभ साहनी के लिए देखने भी नहीं आने वाले। फिल्म की ओपनिंग बहुत खास नहीं दिख रही है। लोगों में फिल्म को लेकर सिद्धार्थ की पिछली फिल्म ‘पठान’ जैसी उत्सुकता भी नहीं दिख रही है। फिल्म दो और कारणों से कमजोर होती दिखती है। एक तो  ये फिल्म भारतीय वायुसेना की शो रील बनती दिखती है। और, दूसरी पुलवामा हमले को लेकर चलने वाली अलग अलग थ्योरीज को खत्म करके ये इसे पाकिस्तान प्रायोजित घटना के तौर पर स्थापित करने की कोशिश करती है। दोनों ही कारक फिल्म को एक उछाल तो देते हैं और जहां जहां भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान या हेलीकॉप्टर हवाई करतब दिखाते नजर आते हैं, वे दृश्य रोमांचक भी हैं, लेकिन कहानी? फिल्म की कहानी ऐसी नहीं है कि लोग इसे चार-पांच साल बाद फिर से देखना चाहें। इस फिल्म में एक कालजयी फिल्म बनने के तत्व सारे हैं, लेकिन फिल्म का फोकस जैसे ही कहानी से हटता है फिल्म लड़खड़ा जाती है। सिद्धार्थ आनंद की इस फिल्म में सबसे बड़ी जीत यही है कि वह ऋतिक रोशन और दीपिका पादुकोण को साथ लाने में सफल रहे। दोनों के साथ वह दो दो फिल्में और भी कर चुके हैं। वर्दीधारियों पर फिल्म बनाने के लिए सिद्धार्थ को कुछ बातें और सीखनी चाहिए। जैसे कि नॉर्मल सैल्यूट क्या होता है, सैल्यूट कब, कौन और किसको कर सकता है? और, जब सिर पर टोपी न हो तो सैल्यूट कैसे किया जाता है?


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